13 जुल॰ 2015

पाँचों प्राणों के स्थान और कार्य


1. प्राणवायु

मस्तक, छाती, कंठ, जीभ, मुख और नाक ये सभी प्राणवायु के स्थान हैं। मन का कार्यक्षेत्र मस्तिष्क होता है एवं प्राणवायु मन का नियमन करता है और सम्पूर्ण इन्द्रियों को अपने-अपने कार्यों में लगाता है।प्राणवायु से अन्न शरीर में जाता है। प्राणवायु के निकलने पर मृत्यु हो जाती है।

2. अपानवायु

अपानवायु के स्थान हैं - दोनों अंडकोष, मूत्राशय, मूत्रेन्द्रिय, नाभि, उरू, वक्षण और गुदा। आंत में रहने वाला अपानवायु शुक्र, मलमूत्र तथा गर्भ को बाहर निकालता है।

3. समानवायु

स्वेद दोष तथा जल-वहन करने वाले स्रोतों में रहने वाला तथा जठराग्नि के पार्श्व में इसका स्थान है। समानवायु अग्नि के बल को बढ़ाने वाला होता है।

4. उदानवायु

नाभि, वक्षःप्रदेश और कण्ठ उदानवायु स्थान हैं। वाणी को निकालना, प्रत्येक कार्य में यत्न करना, उत्साह बढ़ाना, बल और वर्ण को समुचित रखना इसके कार्य हैं।

5. व्यानवायु

व्यानवायु मनुष्य के सारे शरीर में व्याप्त रहता है। यह तीव्र गति वाला होता है।इसका कार्य शरीर में गति उत्पन्न करना, अंगों को फैलाना एवं पलकों को झपकना इत्यादि है।

यदि ये पाँच वायु अपनी स्वाभाविक अवस्था में रहें तो इनके द्वारा रोगरहित स्वस्थ शरीर का धारण होता है।

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