22 सित॰ 2016

क्या वाकई कॉफ़ी पीने से बाल झड़ते हैं?



कॉफ़ी पीने के सेहत पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तरह के प्रभाव पड़ते हैं यही बात हमारे बालों के बारे में भी लागू होती है।

अत्यधिक कॉफ़ी पीने वाले लोगों को अक्सर बाल झड़ने की शिकायत रहती है। यदि नहाते समय आप भी बहुत अधिक बाल झड़ने की समस्या से ग्रसित हैं तो हो सकता है आप भी बहुत अधिक मात्रा में कॉफ़ी ले रहे हों।


बहुत अधिक मात्रा में कॉफ़ी का सेवन करने से हमारा शरीर मिनरल्स ग्रहण में असमर्थ हो जाता है। मिनरल्स ना सिर्फ हमारे बालों के लिए बल्कि सम्पूर्ण शरीर की सेहत के लिए बहुत आवश्यक होते हैं। अत्यधिक मात्रा में कॉफ़ी का सेवन करने से शरीर में आयरन, मैग्नीशियम, जिंक और कैल्शियम जैसे खनिजों की कमी हो सकती है जिससे हमारी सेहत पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ते हैं।


बालों का झड़ना आयरन की कमी के प्रमुख लक्षणों में से एक है। इसके अलावा कॉफ़ी में पाया जाने वाला कैफ़ीन विटामिन बी की कमी का भी कारण है जोकि बालों की बढ़त के लिए बहुत आवश्यक है। साथ ही कॉफ़ी के कारण शरीर में कोर्टिसोल की मात्रा भी बढ़ जाती है जिससे स्ट्रेस बढ़ता है और स्ट्रेस भी बालों के झड़ने के प्रमुख कारणों में से एक है।


तो निष्कर्ष यही निकलता है कि कॉफ़ी का अधिक मात्रा में सेवन वाकई हानिकारक है। यदि दिन में आप एक कप कॉफ़ी लेते हैं तो कोई चिंता की बात नहीं उल्टा इतनी कॉफ़ी की मात्रा आपकी सेहत के लिए अच्छी है लेकिन जब आप हर दिन तीन से चार कप कॉफ़ी लेते हैं तब वाकई समस्या खड़ी हो जाती हैं।


दोपहर 2 बजे के बाद कभी भी कॉफ़ी का सेवन ना करें क्योंकि कॉफ़ी का 8 घंटे तक शरीर में असर रहता है। यदि आप बेहतर नींद चाहते हैं तो सुनिश्चित करें कि दोपहर के बाद कॉफ़ी का सेवन ना किया जाए।

4 सित॰ 2016

संभव हुआ आई ड्रॉप से मोतियाबिंद का इलाज


अंधेपन के सबसे प्रमुख कारणों में से एक मोतियाबिंद का इलाज अब एक दवा के माध्यम से ही संभव होने जा रहा है। अभी तक अधिकांश मामलों में इस रोग में मरीज की आँखों का ऑपरेशन ही करना पड़ता है।

हालांकि इस दवा का परीक्षण अभी मनुष्यों पे किया जाना अभी बाकी है परंतु इस दवा की खोज में मनुष्यों में पाया गया एक म्यूटेशन ही सहायक हुआ है।

यह नयी दवा प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले एस्टेरोइड लेनोस्टेरोल पर आधारित है। मोतियाबिंद के इलाज में इस एस्टेरोइड की खोज भी बड़ी रोचक है। चीन में दो बच्चों को जन्म से ही मोतियाबिंद था लेकिन उनके माता-पिता में ऐसा कुछ कभी देखने में नहीं आया था। शोध में पता चला कि दोनों बच्चों को ही एक आनुवांशिक समस्या थी जिसके कारण उनका शरीर लेनोस्टेरोल नहीं बना पा रहा था जिसके कारण उन्हें मोतियाबिंद की समस्या हुयी। इससे मोतियाबिंद के होने में लेनोस्टेरोल की भूमिका के बारे में पता चला।

बाद में वैज्ञानिकों ने लेनोस्टेरोल के सम्बन्ध में कई प्रयोग किए। प्रयोगशाला में उन्होंने दान किए गए मनुष्य की आंख के मोतियाबिंद से प्रभावित लेंस पर इसका प्रयोग किया तो मोतियाबिंद के आकार में उल्लेखनीय परिवर्तन देखा गया। बाद में इसका परीक्षण खरगोशों पर गया गया और 6 दिनों के भीतर ही कई खरगोशों का मोतियाबिंद पूरी तरह से समाप्त हो गया। अंततः उन्होंने लेनोस्टेरोल का प्रयोग कुत्तों की आँखों पर किया और उनपर भी इसके सकारात्मक परिणाम दिखाई दिए।

दुनियाभर में लाखों लोग मोतियाबिंद से प्रभावित हैं। इस रोग में मरीज़ की आँखों के लेंस में एक प्रकार का प्रोटीन जमने लगता है जिसका यदि समय रहते इलाज नहीं किया जाए तो इसके कारण मरीज़ पूरी तरह से अंधा भी हो सकता है।

वैज्ञानिक इस बारे में अभी सुनिश्चित नहीं हैं कि मोतियाबिंद होने की सही वजह क्या है लेकिन अधिकतर यह बीमारी उम्र बढ़ने के साथ ही पैदा होती है। हालांकि इसकी सर्जरी बहुत ही आसान और सुरक्षित है परंतु फिर भी कई विकासशील देशों में अब भी लोग धनाभाव के चलते यह सर्जरी नहीं करवा पाते जिससे उन्हें अन्धत्व का शिकार होना पड़ता है।

लेनोस्टेरोल से जुड़े प्रयोगों की अगली कड़ी में मोतियाबिंद से जुड़े प्रोटीन पर इसके प्रभाव को जानना और मनुष्यों पर इसके असर को जानने के लिए ह्यूमन ट्रायल करना है।