16 जून 2016

पोलियो वायरस से हुआ कैंसर का इलाज. मौत के मुंह से बच निकली यह लड़की.

हम सभी को कभी ना कभी सरदर्द की शिकायत होती रहती है। सामान्य रूप से इसका कारण तनाव अथवा पानी की कमी हो सकती है। अधिकतर सरदर्द का उपचार आसानी से ही हो जाया करता है। परंतु कभी कभी सामान्य सा समझा जाने वाला सरदर्द भी विकराल समस्या बन जाता है।

ऐसा ही कुछ 20 वर्षीया स्टेफनी लिप्स्कॉम्ब के साथ हुआ। उनके सर के दर्द की इंतेहां होने पर जब उन्होंने चिकित्सकीय सहायता ली तब उन्हें एक ऐसी खबर मिली जिसके बारे में उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था। उन्हें ग्लायोब्लास्टोमा था अर्थात उनके मस्तिष्क में कैंसर संक्रमित टेनिस की एक गेंद के बराबर ट्यूमर था।

बिना समय गंवाए उन्हें कीमोथेरेपी और रेडिएशन दिया गया ताकि उनका ट्यूमर नष्ट हो सके परंतु ये सारे चिकित्सकीय प्रयास किसी काम के साबित नहीं हुए और उनका ट्यूमर जस का तस बना रहा।

उम्मीद की कोई किरण ना दिखने पर अंततः उनके डॉक्टरों ने कुछ ऐसा किया जो पहले कभी नहीं किया गया था। उन्हें पोलियो वायरस से संक्रमित करवाया गया। उनके डॉक्टरों को उम्मीद थी कि ऐसा किये जाने से स्टेफनी का रोग प्रतिरोधक तंत्र काम करने लगेगा और पोलियो वायरस (आनुवांशिकीय रूप से परिवर्तित) के साथ ही उनकी कैंसरयुक्त कोशकाओं का भी सफाया हो जाएगा। हालांकि इस प्रयोग में उनकी जान का खतरा भी था।

चूंकि स्टेफनी के पास वैसे भी कुछ ही महीनों का समय बचा था इसलिए उन्होंने इस प्रयोग के लिए अपनी सहमति दे दी।

आश्चर्यजनक रूप से कुछ ही महीनों में स्टेफनी के मस्तिष्क से कैंसर की कोशिकाओं का सफाया हो गया। आज वे 23 वर्ष की हैं और सामान्य जीवन व्यतीत कर रहीं हैं।

अधिक जानकारी के लिए वीडियो देखें -



10 जून 2016

आपका नया घर कहीं आपके बच्चे को मानसिक रोगी तो नहीं बना रहा?


अपने पुराने घर से नए घर में शिफ़्ट होना वैसे ही एक थका देने वाला अनुभव है परन्तु बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी इसका बहुत बुरा असर पड़ता है। American Journal of Preventive Medicine में प्रकाशित हुई एक शोध के अनुसार जिन बच्चों को बढ़ती उम्र में कई बार घर बदलना पड़ता है उनमें नशे, आत्महत्या यहां तक कि कम उम्र में मृत्यु की संभावना सामान्य बच्चों की तुलना में बहुत अधिक हो जाती है।

इस शोध के लिए डेनमार्क में 1971 से 1997 के बीच जन्में 14 लाख बच्चों का परीक्षण किया गया। इसमें उनके बचपन से उम्र के चौथे दशक के बीच रहे गए स्थानों और उनके जीवन के कई पहलुओं पर प्रकाश डाला गया। इसमें पाया गया कि जिन बच्चों की उम्र घर बदलते समय जितनी कम थी उतनी ही असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ा। उन बच्चों की समस्या तो और भी गंभीर थी जिन्हें एक ही साल में कई बार अपना घर बदलना पड़ा। इन बच्चों के साथ कई मानसिक समस्याएं थीं जैसे हिंसक स्वाभाव, नशे की लत, सामाजिक ना होना, परिवार से कट जाना इत्यादि।

ऐसे बच्चों पर बचपन में पड़ा ये असर उम्र के बाद के पड़ावों पर और भी अधिक गहराता गया एवं कई मामलों में उन्हें कारावास और आत्महत्या जैसे कष्टों को भुगतना पड़ा।

एक खास बात जो इस शोध में निकलकर आई वो यह थी कि इस सब में परिवार की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का समस्या से बहुत ज़्यादा लेना-देना नहीं था अर्थात समाज के सभी वर्गों और समुदायों पर अपना घर बदलने का समान प्रभाव पड़ता है।

समाधान के रूप में अभिभावकों को सलाह दी जाती है कि वे मित्रवत अपने बच्चों से निरन्तर उनकी परेशानियों के बारे में पूछें। उन्हें बदलाव के लिए सकारात्मक रूप से प्रेरित करें और उनकी मानसिक ज़रूरतों का पूरा ख्याल रखें। सबसे ज़रूरी बात यदि आपको ऐसा लगता है कि वे पुराने घर से जुड़ी किसी भी चीज़ के साथ ना रहने से असहज हैं तो खुलके उनसे इस बारे में बात करें। उन्हें अपने पुराने मित्रों से मिलने-जुलने की आज़ादी दें।

माता-पिता यदि इस समस्या के बारे में जानकारी रखेंगे तो निश्चित ही वे पहले से इसके तैयार होंगे और अपने बच्चों को बदलाव के लिए तैयार रख पाएंगे।

स्रोत: Webb R, Pedersen C. Adverse Outcomes to Early Middle Age Linked With Childhood Residential Mobility. American Journal of Preventive Medicine. 2016.

गोमूत्र रिफायनरी जहां बेंच सकते हैं 2 रु. किलो गोबर और 5 रु. किलो गोमूत्र


गोपालकों के लिए एक अच्छी खबर। राजस्थान के जालोर जिले के सांचोर में एक ऐसी गोशाला खोली गई है जो गोपालकों से गाय का गोबर और गोमूत्र खरीद रही है। भारत में श्रीपथमेड़ा गोधाम इस तरह की यह पहली गोमूत्र रिफायनरी है।

गोपालकों के सामने यह समस्या रहती है कि दूध देना बंद करने के बाद गाय को पाले रखना महंगा सौदा साबित होता है जिसके चलते वे उसे किसी भी दाम पर बेंच देते हैं। बड़े दुःख की बात है कि ऐसी गायें कभी-कभी कसाईयों के हाथ लग जाती हैं। ऐसे में श्रीपथमेड़ा गोधाम द्वारा उठाया यह कदम बहुत सराहनीय है। जब गोबर और गोमूत्र से ही गोपालकों को आमदनी होगी तो फिर वे उसे कभी नहीं बेंचना चाहेंगे।

श्रीपथमेड़ा गोधाम में गोमूत्र से कई उत्पाद तैयार किये जाते हैं फ्लोर क्लीनर, हैंडवॉश, गोमूत्र का अर्क इत्यादि। यह गोशाला गोबर से बिजली भी बनाने पर भी काम कर रही है। गोबर से बिजली बनाने का प्रोजेक्ट पूरा हो जाने के बाद इस प्लांट से हर घंटे 2 मेगावॉट बिजली बनाई जा सकेगी। इसमें प्लांट में प्रतिदिन 200 टन गोबर की खपत होगी।

अधिक जानकारी के लिए आप श्रीपथमेड़ा गोधाम गोशाला की वेबसाइट www.pathmedagodham.org पर विज़िट कर सकते हैं।