22 नव॰ 2017

कैसे जानें खाना खाते वक़्त कि पेट भर गया है?


एक औसत व्यक्ति का पेट अथवा आमाशय लगभग 4 लीटर का होता है एवं इतनी मात्रा में भोजन ले पाना नामुमकिन होता है तो फिर कैसे हमें पेट भरा जाने का एहसास होता है?

प्रतिक्रिया तंत्र

दरअसल पेट भर जाने अथवा तृप्ति के संकेत हमें हमारा मस्तिष्क पेट को भेजता है। जब भी हम भोजन करते हैं तो पेट में खिंचाव शुरू होने लगता है और पेट के स्ट्रेच रिसेप्टर हमारे मस्तिष्क को सिग्नल भेजने लगते हैं और मस्तिष्क उन सिग्नल का विश्लेषण करके एक समय के बाद हमें संकेत भेजने लगता है कि अब और अधिक मात्रा में भोजन की आवश्यकता नहीं है और हम तृप्ति की अनुभूति करने लगते हैं। इसके अलावा भोजन के प्रकार का भी तृप्ति से सम्बन्ध है।

समय

मस्तिष्क तक स्ट्रेच के सिग्नल पहुँचने में लगभग 20 मिनट का समय लगता है इसलिए पेट भरा जाने के एहसास का समय से भी सीधा सम्बन्ध है। वज़न कम करने के लिहाज़ से भी यह बात महत्वपूर्ण है। आपको अपना भोजन हमेशा धीरे-धीरे स्वाद लेकर और अच्छी तरह चबाकर करना चाहिए।

कैसे जानें खाना खाते वक़्त कि पेट भर गया है?

ज़रूरी नहीं है कि आप तब तक ही भोजन करते रहें जब तक कि आपको पूरी तरह से पेट भर जाने का एहसास होने लगे. दरअसल यह तो एक survival mechanism है जो हमें पाचन क्षमता से अधिक भोजन ना करने का संकेत देता है. यदि आप मस्तिष्क में गंध-स्वाद की बजाय भोजन का अनुभव पेट में करेंगे तो आपको अंदाज़ा लग जायेगा कि आवश्यकता के अनुरूप भोजन किया जा चुका है.

2 अप्रैल 2017

कहीं आप भी तो टीवी देखते हुए खाना नहीं खाते?


आजकल अकसर यह देखने में आता है कि लोग खाना खाते वक़्त टीवी ज़रूर देखते हैं। देखने में तो यह कोई बड़ी चिंता की बात नहीं लगती लेकिन हाल ही में हुए शोधों पर यकीन किया जाए तो खाते वक़्त टीवी देखना मोटापे और डायबिटीज़ होने के कई कारणों में से एक हो सकता है।

सामान्यतया खाना खाते समय हमारा अवचेतन मन खाने से जुड़े कई पहलुओं पर गौर करता है जैसे कि उसका स्वाद, तापमान, पोषण, भार एवं रसीलापन इत्यादि। हमारा मस्तिष्क सभी तरह की गणनाओं के बाद यह निष्कर्ष निकालता है कि कितना भोजन कर चुकने के बाद जिह्वा को सन्देश देना है कि आवश्यकतानुरूप भोजन कर लिया जा चुका है। सरल शब्दों में कहा जाए दिमाग हमें सन्देश देता है कि अब बस किया जाना चाहिए। लेकिन जब हम टीवी देखते हुए भोजन करते हैं तो हमारा अवचेतन भोजन की बजाय टीवी पर चल रहे कार्यक्रम के अनुरूप संचालित होने लगता है और वह अपना ध्यान भोजन से जुड़ी गणनाओं पर केंद्रित नहीं कर पाता। ऐसे में हमें पता नहीं चलता कि कितना भोजन किया जाना चाहिए और हम पूरी तरह से पेट भर जाने पर आवश्यकता से अधिक भोजन कर चुकते हैं।

इसके अलावा टीवी देखते समय हमारा बैठने का तरीका भी हमारे पाचन पर बुरा असर डालता है। सामान्यतया खाना खाते समय हमारी गर्दन कुछ नीचे की ओर झुकी हुई होती है परंतु टीवी देखते समय यह अपनी सामान्य अवस्था में नहीं रह पाती। अधिक समय तक ऐसा किये जाने पर हमारे पाचनतंत्र पर बुरा असर पड़ता है।

इसलिए भोजन हमेशा एकांत में मग्न होकर ही किया जाना चाहिए। टीवी,लैपटॉप और फ़ोन तो हम कभी भी इस्तेमाल कर सकते हैं बेहतर होगा कि खाना खाते समय हमारा सम्पूर्ण ध्यान भोजन पर ही रहे। यह सेहत के लिए तो महत्वपूर्ण है ही साथ यह उसके लिए भी सम्मानजनक है जिसने आपके लिए इतनी मेहनत से भोजन तैयार किया है।

22 फ़र॰ 2017

वैज्ञानिकों ने तैयार किया रोते हुए बच्चे को हंसाने वाला गाना

एक रोते हुए बच्चे को हंसाना हर किसी के बूते की बात नहीं इसलिए वैज्ञानिकों की मदद से एक ऐसा गाना तैयार किया गया है जिसे सुनके रोता हुआ बच्चा भी हंस पड़े।

दरअसल बच्चे के मन पर कुछ विशेष ध्वनियां और उनका क्रम प्रभाव डालती हैं।  इसी तथ्य के आधार पर 2016 में लंदन विश्विद्यालय के बालविकास विशेषज्ञ कैस्पर एडीमन ने यूके की बेबी फ़ूड बनाने वाली कंपनी काऊ एंड गेट के लिए एक गाना तैयार किया।

गाना तैयार होने के बाद 7 परिवारों को नियमित रूप से अपने बच्चों को यह गाना सुनाने के लिए कहा गया। इस प्रयोग का परिणाम आशा के अनुरूप निकला और बच्चों के मूड में काफी परिवर्तन दिखाई दिया।

गाने का वीडियो:



Bring! Bring! On the bicycle
Beep! Beep! In the car
Ping! Ping! A submarine
Phew! Phew! helicopter
A choo-choo train
An aeroplane
A "wee!" down the slide

I just adore-dore-dore
You every day more
Wherever we are

So up in the sky
And deep in the ocean
Through valleys and hills
Away we go


Bring! Bring! On the bicycle
Beep! Beep! In the car
Ping! Ping! A submarine
Phew! Phew! helicopter
A choo-choo train
An aeroplane
A rocket to the stars!

There's a dance-dance-dance
Going on in my heart
Wherever we are

So up in the sky
And deep in the ocean
Through valleys and hills
Away we go

You little monkey
You're staying up late
Who purrs like a cat
When they get their own
Who then turns into a lion
Who lets out a...

(RAWR!)

I love-love-love
You every day more
Whatever's in store

So up in the sky
And deep in the ocean
Through valleys and hills
Away we go

So up in the sky
And deep in the ocean
Through valleys and hills
Away we go

6 फ़र॰ 2017

लाइलाज नहीं है गठिया, निश्चित लाभ के लिए करें ये उपचार

आम धारणा है कि गठिया अथवा arthritis रोग का कोई इलाज नहीं है। इस रोग में यूरिक एसिड बढ़ जाता है जिसके कारण रोगी को बहुत दर्द का अनुभव होता है। ऐलोपैथी में इसका इलाज नहीं है, पाश्चात्य चिकित्सा प्रणाली में इसमें डॉक्टर मरीजों को पेन किलर देते रहते हैं जिससे मरीज़ का थोड़ी राहत तो मिल जाती है लेकिन इससे रोग की गंभीरता और भी बढ़ती चली जाती है। इस रोग में हड्डियाँ भी टेढ़ी मेढ़ी हो जाती हैं जिससे रोगी का सामान्य रूप से चलना-फिरना आदि भी मुश्किल होता चला जाता है। इसके विपरीत आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में गठिया को जड़ से समाप्त किया जा सकता है।

निम्न प्रकार से चिकित्सा करने पर गठिया का रोगी स्वस्थ हो सकता है। ये सारे उपाय ऐसे हैं जिन्हें आसानी से घर पे ही  किया जा सकता है और इसके कोई साइड इफ़ेक्ट्स भी नहीं है।

गठिया रोग के घरेलू उपचार

1. मेथी गठिया या arthritis में बहुत प्रभावशाली है। किसी भी प्रकार से उपयोग करने पर इसमें फायदा होता है। चूँकि इसकी तासीर बहुत गरम होती है तो जिन्हें गर्मी अपच आदि की शिकायत हो रात को मेथी को पानी में भिगोकर रख दें और सुबह उसको खाली पेट खा लें।

2. हल्दी, मेथी और सौंठ सबको समान भाग में मिलाकर पीसकर रख लें और सुबह-शाम नित्य इसका 1-1 चम्मच सेवन करें। जिनको एसिडिटी या बवासीर की शिकायत हो तो वे इसका अल्प मात्रा में ही सेवन करें।

3. सुबह नित्य 1-2 कली लहसुन की नित्य खाएं।

4. गठिया रोग में मोथा घास के सेवन बहुत ही प्रभावकारी है। गठिया के मरीजों को इसे सुखाकर पाउडर कर रोज़ 1-2 चम्मच ना चाहिए।

5. एलोवेरा (घृतकुमारी या गंवारपाठा) का जूस भी गठिया में बहुत ही प्रभावकारी है।

गठिया का आयुर्वेदिक इलाज

6. किसी भी आयुर्वेदिक स्टोर में योगराज, चंद्रप्रभा वटी एवं शिलाजीत रसायन उपलब्ध होती है। इन सभी की 1-1 गोली का नित्य सुबह-शाम अथवा रोग की गंभीरता के अनुसार 3 बार अर्थात सुबह-दोपहर-शाम लेना गठिया रोग में बहुत ही प्रभावकारी है। इन दवाओं का सेवन योग्य चिकित्सक के परामर्श के बाद ही प्रयोग करें।

7. गठिया रोग में अधिक दर्द होने पर दिव्य पीड़ान्तक क्वाथ का सेवन रोगी को कराया जा सकता है जोकि पतंजलि स्टोर पर उपलब्ध रहती है।

गठिया रोग मे परहेज

गठिया रोग में परहेज़ का भी ध्यान रखना बहुत आवश्यक है। अच्छी से अच्छी औषधि भी तभी काम करती है जब पथ्य-कुपथ्य (परहेज़) का ध्यान रखा जाए।

इस रोग में रोगी को मीठे के सेवन से बचना चाहिए क्योंकि इससे शरीर की धमनियों में सूजन बढ़ती है। डेयरी प्रोडक्ट भी गठिया रोग में नहीं खाने चाहिए क्योंकि इसमें मौजूद प्रोटीन ऊतकों को बढ़ाते हैं जिससे रोगी का दर्द और भी बढ़ जाता है। बहुत खट्टे फल, सॉफ्टड्रिंक एवं एल्कोहल का प्रयोग किसी भी दशा में गठिया के रोगियों को नहीं करना चाहिए।

इन प्रयोगों को करने से रोगी व्यक्ति गठिया जैसे रोग से मुक्ति पा जाता है। मेथी, हल्दी, सौंठ और एलोवेरा जूस ये सभी गठिया रोग का नाश करने वाले हैं। यदि इन उपायों को नित्य परहेज़ के साथ किया जाए तो कुछ ही समय में रोगी रोगमुक्त हो जाता है।

31 जन॰ 2017

महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले अधिक नींद लेना चाहिए: शोध


आमतौर पर देखा जाता है कि महिलाएं घर के बाकी सदस्यों से पहले उठ जाती हैं। ना कि सिर्फ गृहिणियां बल्कि कामकाजी महिलाएं भी सबसे पहले उठकर घर के कामकाज में लग जाती हैं। जबकि महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले अधिक नींद की आवश्यकता होती है। वैज्ञानिक शोधों के द्वारा यह साबित हो चुका है कि चूंकि महिलाओं का मस्तिष्क पुरुषों के मुकाबले ज़्यादा जटिल होता है इसलिए उन्हें नींद की आवश्यकता भी अधिक होती है।

इंग्लैण्ड के लाफ़बरा विश्विद्यालय के प्रोफेसर जिम हॉर्न कहते हैं कि महिलाओं के चिड़चिड़ेपन, तनाव और क्रोध के प्रमुख कारणों में से एक उनका कम नींद लेना है। ऐसे मनोभाव उसी उम्र के पुरुष-महिलाओं में कम देखे जाते हैं जो भरपूर नींद लेते हैं।

8 घण्टे की नींद लेना सभी के मानसिक स्वास्थ्य एवं विकास लिए अनिवार्य समझा जाता है लेकिन प्रोफेसर के अनुसार महिलाओं का मस्तिष्क पुरुषों की तुलना में अधिक जटिल होता है इसलिए उन्हें नींद की आवश्यकता भी अधिक होती है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं का मस्तिष्क इस तरह का होता कि वे एक साथ कई काम कर सकती हैं जबकि पुरुषों का मस्तिष्क एक बार में एक ही काम करने पर केंद्रित होता है। महिलाएं बखूबी कई काम एक साथ सम्हाल लेती हैं। एक से अधिक कार्यों पर एक एकसाथ ध्यान लगे रहने के कारण पुरुषों की तुलना में महिलाओं के मस्तिष्क का अधिक भाग कार्य करता रहता है। और इस मानसिक थकान के लिए उन्हें ज़्यादा आराम की आवश्यकता होती है परंतु इसके विपरीत महिलाएं पुरुषों से कम नींद लेती हैं।

इसलिए सम्पूर्ण मानसिक स्वास्थ्य और घर में अच्छे वातावरण के बने रहने के लिए महिलाओं का चुस्त और प्रसन्न बना रहना बड़ा आवश्यक है इसलिए यदि आप यदि गृहिणी हैं या फिर कामकाजी महिला आपको अपनी दिनचर्या ऐसे व्यवस्थित करनी चाहिए कि आप भरपूर नींद ले सकें। घर के पुरुषों की भी यह ज़िम्मेदारी है कि वे घर की महिलाओं की भरपूर नींद के बारे में भी सचेत रहें।

30 जन॰ 2017

इस एक उपाय को करने से कभी नहीं होगा आपको कैंसर


 कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसका नाम सुनते ही हमारे ज़ेहन में एक डर बैठ जाता है। यह बीमारी खतरनाक होते हुए भी इतनी आम हो चली है शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसके किसी ना किसी प्रिय व्यक्ति की कैंसर के कारण कभी मृत्यु ना हुई हो। हालाँकि बीते कुछ सालों में काफी ऐसे केस भी सुनाई देने लगे हैं जब लोगों ने कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी को भी मात दी है। शुरुआत में ही कैंसर का पता चल जाने पर एवं सही ट्रीटमेंट लेने पर कैंसर का इलाज अब संभव है लेकिन क्या कुछ ऐसा भी किया जा सकता जिससे कैंसर से ताउम्र बचा जा सके।

Prevention is better than cure अर्थात इलाज से कहीं बेहतर है कि रोग होने ही ना पाए। अन्य रोगों की तरह कैंसर भी ऐसा ही रोग है जिससे कुछ सावधानियाँ बरतकर बचा जा सकता है क्योंकि सभी कैंसर के केसों में सिर्फ 5% लोगों को कैंसर आनुवंशिक कारणों से होता है बाकी 95% कैंसर सिर्फ जीवनशैली एवं खानपान सही ना होने के कारण होता है। इसके अलावा 75% कैंसर 55 की उम्र के बाद होता है अर्थात जीवन भर उन्होंने जिस तरह का जीवन जिया है उसी का परिणाम उन्हें उम्र के आधे पड़ाव पर देखना पड़ता है।

एक अच्छी सेहतमंद ज़िन्दगी जीना लोग जैसे भूल ही गए हैं। बचपन से ही जंक एवं प्रोसेस्ड फ़ूड खाने के कारण शरीर में विषैले तत्व जमा होने लगते हैं एवं इसका रोगप्रतिरोधक क्षमता पर बहुत बुरा असर पड़ता है। रही-सही कसर युवावस्था में नषीले पदार्थ पूरी कर देते हैं।

सबसे बड़ी बात जो समझने लायक है वह यह है कि आपका शरीर कई बार कैंसर को मात दे चुका होता है लेकिन जब मानव शरीर यह क्षमता खो बैठता है तो अंततः कैंसर अपना प्रभाव जमा लेता है। फ्री रेडिकल्स के कारण कोशिकाएं जब नष्ट होने लगती हैं तो वहीं से कैंसर पनपने लगता हैं इसलिए हमारी डाइट में एंटी ऑक्सीडेंट्स का होना बहुत ज़रूरी है।

ऐसा भोजन लेने से बचें जो बहुत ज़्यादा एसिडिक हो। लेकिन देखने में आता है कि बहुतायत में हम एसिडिक भोजन ही अधिक मात्रा में ले रहे होते हैं। शीतल पेय पदार्थ एवं सोडा इत्यादि से जितना दूर रहेंगे उतना ही आपकी सेहत के लिए वह अच्छा होगा। शरीर को रोज़ पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिलनी चाहिए इसके लिए रोज़ योग-प्राणायाम एवं हल्का व्यायाम करें।

पके हुए भोजन से ज़्यादा स्थान सलाद और फलों को दें एवं सुनिश्चित करें कि जो भी फल-सब्ज़ी आप ले रहे हैं वे कीटनाशकों से मुक्त हों। सब्ज़ी-फल इत्यादि को प्रयोग में लाने से पहले यदि उन्हें आधा घंटा नमक और नीम्बू के रस अथवा विनेगर में रखा जाए तो उनमें कीटनाशकों का असर ख़त्म हो जाता है।

आइए अब जानते हैं विशेष रूप से कैंसर से बचने के लिए कौन सा प्रयोग आप कर सकते हैं।

  • लहसुन प्रकृति का दिया अनमोल उपहार है। इसमें पाए जाने वाले तत्व कैंसररोधी होते हैं। प्रातः खाली पेट पानी के साथ इसके सेवन से कभी हृदयरोग नहीं होते एवं भोजन से 30 मिनट पहले इसकी 2-3 कली नित्य चबाने से कभी पेट का कैंसर नहीं होता।
  • देखा जाता है कि भारतीय देसी गाय का दूध पीने वालों को कभी कैंसर नहीं होता। यहाँ तक कि कई ऐसे उदाहरण हैं जिनको आख़िरी स्टेज का कैंसर था वो भी भारतीय देसी गाय का धारोष्ण (सीधा थन से निकलने वाला) दूध पीकर ठीक हो गए।
  • नित्य जवारे का रस का सेवन करने से भी कभी कैंसर नहीं होता। जवारे का रस सबसे सुलभ एवं सरल उपाय है। हर दिन मात्र एक कप जवारे के रस के सेवन से तमाम बीमारियों से बचा जा सकता है।
इस प्रकार आप यदि अच्छी जीवनशैली अपनाएंगे तथा संतुलित एवं हितकर आहार व योग-प्राणायाम करेंगे तो कैंसर जैसी रोग से सदा बचे रहेंगे। 

28 जन॰ 2017

कैसे आते हैं खर्राटे और क्या है उनका उपचार

खर्राटे एक ऐसी बीमारी है जो व्यक्ति के खुद के स्वास्थ्य के लिए चिंता का कारण तो है ही साथ में यह व्यक्ति के आस-पास सोने वाले व्यक्ति के लिए भी परेशानी का सबब बन जाता है। खर्राटे व्यक्ति तब लेता है जब सोते समय उसके मुँह में जिह्वा से जुड़ी मांसपेशियां ढीली होकर हवा के रास्ते को बंद कर देती हैं। ऐसी स्थिति में मांपेशियां वायब्रेट होकर खर्राटे की आवाज़ निकालने लगती हैं। इस वीडियो की मदद से आप इस प्रक्रिया को आसानी से समझ सकते हैं।






उपचार:


  • खर्राटे की समस्या से आमतौर पर मोटे लोग ही ग्रसित रहते हैं इसलिए इस समस्या से जूझ रहे लोगों को सबसे पहले अपना मोटापा कम करने पर ध्यान देना चाहिए। मोटापे के कारण गले के आसपास फैट जमा हो जाता है जोकि खर्राटे पैदा करने में सहायक सिद्ध होता है। [पढ़ें मोटापा दूर करें]
  • खर्राटे से परेशान लोगों को पीठ के बल नहीं सोना चाहिए क्योंकि इस स्थिति में खर्राटे आने की संभावना बढ़ जाती है।
  • किसी भी परिस्थिति में अधिक मोटा तकिया रखकर ना सोएं। खर्राटे के अलावा भी मोटे तकिये के कारण कई रोग होने की संभावना रहती है।
  • नशा और नींद की गोलियों का खर्राटों से सीधा संबंध है। नशे के कारण हमारे मस्तिष्क का नियंत्रण मांसपेशियों पे से हट जाता है और खर्राटे आने की संभावना बढ़ जाती है। धूम्रपान भी वायुमार्ग को अवरुद्ध करता है इसलिए खर्राटों से परेशान व्यक्ति को धूम्रपान से तौबा करनी चाहिए। [पढ़ें शराब से दूर रहने के कुछ मज़ेदार फायदे]
  • रात को सोने से 2 घण्टे पहले कुछ ना खाएं तथा भरपूर पानी पीकर सोएं। भोजन में नमक का इस्तेमाल कम से कम करें। क्योंकि नमक के कारण शरीर में ऐसी तरल का निर्माण होता है जो वायुमार्ग को अवरुद्ध करता है। [पढ़ें मोटापे को दावत देता नमक]
  • प्रतिदिन व्यायाम करें। व्यायाम करने से ना सिर्फ मोटापे से लड़ने में मदद मिलती है बल्कि इससे आपकी मस्तिष्क और बॉडी के बीच का तालमेल भी सुधरता है। जोकि अवचेतनावस्था में मांसपेशियों के सही संचालन के लिए बहुत ज़रूरी है।
  • खर्राटे की समस्या जड़ से ख़त्म करना हो तो नित्य 5-5 मिनट उज्जाई एवं अनुलोम-विलोम प्राणायाम करें। कुछ ही हफ़्तों में यह समस्या समाप्त हो जाएगी।

माँ के पेट में पलते नन्हें जानवरों की तस्वीरें

माँ के पेट में पल रहे विभिन्न जानवरों के बच्चों की तस्वीरें देखते ही बनती हैं। कुछ सुंदर तो कुछ भयावह भी। लेकिन ये तस्वीरें 100% असली नहीं हैं। नेशनल जियोग्राफिक पर प्रदर्शित हुई एक डॉक्यूमेंट्री के लिए इन्हें 3D अल्ट्रासॉउन्ड, छोटे-छोटे कैमरों और कम्प्यूटर ग्राफ़िक्स के ज़रिए बनाया गया था। असली ना होने के बावजूद भी ये उनका सटीक चित्रण करते हैं।


हाथी




ध्रुवीय भालू



साँप




डॉल्फिन



पॉसम



टाइगर शार्क



तेंदुआ



लेमन शार्क



पेंग्विन



चिवावा



चमगादड़



घोड़ा



तस्वीरें Reddit एवं TimFlach.com के सौजन्य से

17 जन॰ 2017

क्या है भोजन करने का सबसे सही वक़्त?


आयुर्वेद के अनुसार दिन के पहले भाग में ही दैनिक आवश्यकता का अधिकांश भोजन हमें ग्रहण कर लेना चाहिए अर्थात सुबह सबसे अधिक, दोपहर में उससे थोड़ा कम एवं संध्या अथवा रात्रि में कम से कम मात्रा में भोजन किया जाना चाहिए। ऐसा करने से ना सिर्फ वज़न कम करने में मदद मिलती है अपितु यह हमारे सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए ही अच्छा है।

इस तथ्य की पुष्टि आधुनिक शोधों से भी होती है। ख्यात जर्नल डायबिटोलोजिया में प्रकाशित एक शोध के अनुसार ऐसे मधुमेह के रोगी जो दिन में अधिक खाना खाते हैं एवं रात्रि में बिलकुल नहीं खाते अथवा कम खाते हैं ऐसे लोगों का वज़न कम बढ़ता है तथा इन्सुलिन का स्राव भी अन्य लोगों की तुलना में अधिक होता है।

परंतु आजकल की दिनचर्या तो कुछ ऐसी है कि सुबह-सुबह तो बस भागदौड़ ही मची रहती है। किसी को ऑफिस जल्दी पहुंचना है तो कोई अपनी मीटिंग के लिए लेट हो रहा होता है। इतनी सुबह बहुत कम ही लोगों का भोजन करने में मन लगता है। ऐसे में जल्दी भूख लगने का एक ही उपाय है वो है सुबह का वर्कआउट। सुबह थोड़ा जल्दी उठकर सबसे पहले यदि व्यायाम को आप अपनी आदत बना लेंगे तो सुबह भी आपको दोपहर या रात के समान ही भूख लगने लगेगी। इसके अलावा यदि आपने पिछली रात कम भोजन किया होगा तो सुबह भूख भी जल्दी लगेगी।

शाम होते-होते स्ट्रेस हार्मोन भी शरीर में इकठ्ठा होते चले जाते हैं और इस स्ट्रेस से निपटने के लिए लोग जंक फ़ूड अथवा चटपटे पदार्थ का सहारा लेते हैं और रात को पेट भरकर खाना खाकर सो जाते हैं। इससे शरीर में और भी अधिक कैलोरी जमा होती है। लेकिन यदि दिन भर में आपने पर्याप्त मात्रा में भोजन कर रखा है तो शाम को आपका फ़िज़ूल खाने का मन भी नहीं करेगा।

भोजन के अलावा बीच-बीच में स्नैकिंग से भी बचा जाना चाहिए। यदि कुछ खाने का मन करे तो ऐसे में आप सलाद अथवा ज्यूस पी सकते हैं।

जैसे हम बाकी कार्य योजबद्ध तरीके से करते हैं उसी प्रकार भोजन लेने की भी प्लानिंग की जानी चाहिए। हमेशा याद रखें की दिन की शुरुआत में अधिक एवं शाम होते-होते हमें कम मात्रा में कैलोरी लेनी चाहिए।

14 जन॰ 2017

कितना जानते हैं आप अपने ब्लडग्रुप के बारे में?


सन 1900 से पहले तक यह माना जाता था कि सभी का रक्त एक सामान ही होता है जिसके चलते लोगों की मौत तक हो जाती थी। परंतु आज हम यह जानते हैं कि हर व्यक्ति किसी न किसी रक्त समूह से सम्बन्ध रखता है जैसे A, B, AB  या O जिसका निर्धारण जन्म से ही हो जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार हर रक्त समूह की अपनी ख़ूबियाँ होती हैं। आइए जानते हैं रक्त समूहों की विभिन्न विशेषताओं के बारे में-

रक्तसमूह का संतान से संबंध

85 प्रतिशत लोगों का रक्त समूह Rh पॉज़िटिव होता है। परंतु यदि माता एवं पिता रक्त समूह विपरीत Rh (किसी भी रक्तसमूह का पॉज़िटिव और नेगेटिव) वाला हो तो होने वाली संतान को कुछ स्वास्थ्य संबंधी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

रक्तसमूह और बीमारियाँ

अलग-अलग रक्त समूह विभिन्न बीमारियों में अलग-अलग प्रभाव डालते हैं इसलिए रोगों के उपचार में रोगी के रक्त समूह का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।

रक्तसमूह और पोषण

किस तरह का भोजन आपको लेना चाहिए और किस तरह के भोजन से आपको परहेज़ करना चाहिए इसकी लिए आपको अपना रक्तसमूह मालूम होना चाहिए। उदाहरण के जिन लोगों का रक्तसमूह A है उन्हें सब्ज़ियाँ अधिक मात्रा में खानी चाहिए।

O रक्तसमूह के लोगों को अधिक प्रोटीन वाली डाइट लेनी चाहिए जैसे मांस एवं मछली इत्यादि। AB रक्तसमूह के लोगों को बिना चर्बी का मांस एवं सी फ़ूड अधिक लेना चाहिए। वहीं B रक्तसमूह के लोगों के लिए रेड मीट सबसे उपयुक्त होता है।

रक्त के एंटीजेन

रक्त के एंटीजेन रक्त, पाचनतंत्र, फेंफड़ों, नाक, मुंह और मलाशय में पाए जाते हैं।

रक्तसमूह और तनाव

जिन लोगों का रक्तसमूह O होता है उन्हें किसी तनावपूर्ण परिस्थिति से निकलने के लिए ज़्यादा समय की आवश्यकता होती है।

रक्तसमूह का मोटापे से सम्बन्ध

आपके रक्तसमूह का भी आपके मोटापे से सीधा सम्बन्ध है। O रक्तसमूह के लोग तुलनात्मक रूप से मोटापे के अधिक शिकार होते हैं वहीं जिनका रक्तसमूह A
होता है उनमें  मोटापे की समस्या अपेक्षाकृत रूप से कम देखने में आती है।

रक्तसमूह एवं गर्भावस्था

AB रक्तसमूह की महिलाओं को गर्भधारण करने में आसानी होती है क्योंकि उनमें फॉलिकल पैदा करने वाले हार्मोनों का निर्माण कम होता है।

रक्तसमूह एवं आपातकाल

यदि कभी आपको रक्त चढ़ाए जाने की आवश्यकता हो तो हमेशा याद रखें कि जिन लोगों का रक्तसमूह O Rh नेगेटिव होता है तो वे किसी को भी अपना रक्त प्रदान कर सकते हैं वहीं AB रक्तसमूह के लोग किसी भी रक्तसमूह के लोगों का रक्त ले सकते हैं।

12 जन॰ 2017

कैसे करें प्लास्टिक के चावल की पहचान


चीन के नकली सामान का उद्योग अरबों डालर का है। आईफोन से लेकर दवाओं तक ऐसी कोई चीज़ नहीं जिसकी नकली कॉपी चीन में ना बनती हो। हाल ही में कोरियाई पत्र-पत्रिकाओं ने चीन से आयातित चावल में प्लास्टिक से बने चावल की मिलावट को प्रमुखता से छापा जिसके चलते उनकी सरकार ने कड़े कदम उठाए।

प्लास्टिक से बने चावल स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हैं क्योंकि ये प्लास्टिक एवं स्टार्च से बने होते हैं, इनमें चावल की खुशबू के लिए आर्टिफीशियल सुगंध का इस्तेमाल किया जाता है जो कि सुरक्षित नहीं है।

ऐसे में ज़रूरी हो गया है कि बाज़ार से जाने-माने ब्रांड का एवं विश्वसनीय स्टोर से ही चावल खरीदा जाए। घर पर भी प्लास्टिक से बने चावल की मिलावट की जांच निम्न तरीकों से की जा सकती है-

परीक्षण 1:

एक गिलास पानी में एक चम्मच चावल डालकर देखें। यदि चावल तले में बैठ जाता है तो चावल असली है।

परीक्षण 2:

चावल को जला कर देखें। असली चावल आसानी से नहीं जलता और यदि यह प्लास्टिक की तरह आसानी से जल जाता है तो चावल नकली है।

परीक्षण 3:


चावल को पीसकर देखें। असली चावल पीसने के बाद एक समान चूर्ण बन जाता है लेकिन प्लास्टिक से बने चावल अनियमित रूप से टूटकर कुछ छोटे कुछ बड़े टुकड़ों में तब्दील हो जाता है।

परीक्षण 4:


यह सबसे कारगर उपाय है लेकिन इसमें वक़्त लगता है। चावल को पकाकर 1-2 दिन थोड़े पानी में भिगोकर रख दें। यदि चावल में फफूंद पड़ जाती है तो चावल असली है।

ये सारे परीक्षण घर पर ही किए जा सकते हैं। अपनी और अपनों की अच्छी सेहत के लिए बाजार से लाई हर सामग्री को जाँच-परख कर ही उपयोग में लाना चाहिए।


10 जन॰ 2017

बेकिंग सोडा से पाएं डैंड्रफ से छुटकारा


क्या आपने भी डैंड्रफ से परेशान होकर अपनी काली ड्रेस पहनना छोड़ दिया है? आजकल महिलाओं एवं पुरुषों में डैंड्रफ पाया जाना आम बात हो गई है। बाज़ार में तरह-तरह के दावे करने वाले जाने कितने शैम्पू हैं। कुछ बेकार तो कुछ असरदार। परंतु असरदार शैम्पू भी इस्तेमाल बंद करते साथ ही डैंड्रफ की समस्या फिर खड़ी हो उठती है।

घरेलू तरीकों से डैंड्रफ का उपचार पूर्ण रूप से संभव है। उपचार जानने से पहले आइए जानते हैं कि डैंड्रफ की समस्या आखिर पैदा कैसे होती है। डैंड्रफ एक फंगल इंफैक्शन है जो मलासेज़िया फंगस के कारण उत्पन्न होता है। जब यह फंगस सर की त्वचा के संपर्क में आता है तो उससे ओलिक एसिड बनने लगता है जिससे प्रभावित होकर त्वचा की एपिडर्मल लेयर नष्ट होने लगती है जिसके कारण त्वचा की मृत कोशिकाएं डैंड्रफ के कणों के रूप में झड़ने लगती हैं।

डैंड्रफ से लड़ने में बेकिंग सोडा प्रमाणित रूप से असरकारक है। यह बाकी अन्य एंटी डैंड्रफ उत्पादों की तुलना में कहीं अधिक किफायती और आसानी से मिलने वाला है। बेकिंग सोडे के नियमित इस्तेमाल से डैंड्रफ की समस्या से हमेशा के लिए छुटकारा तो मिलता ही है साथ ही यह आपके सर की त्वचा को और भी अधिक स्वस्थ बनाता है क्योंकि बेकिंग सोडा का सोख लेने का गुण तेल, धूल-मिट्टी एवं मृत कोशिकाओं को निकाल देता है। यह बालों को ड्राय किये बगैर शरीर से निकलने वाले अतिरिक्त तैलीय पदार्थ को भी हटा देता है। इसकी प्रकृति कुछ इस प्रकार की होती है कि यह स्किन को ड्राय किए बगैर ही त्वचा को साफ़ कर देता है और सबसे बड़ी बात इसका pH लेवल alkaline अर्थात क्षारीय होता है जो हमारी त्वचा के pH लेवल को भी संतुलित बनाए रखने में मददगार है।

डैंड्रफ के लिए बेकिंग सोडा का प्रयोग कैसे करें?

इसके लिए आप बेकिंग सोडा में नीम्बू का रस मिलाकर एक पतला पेस्ट तैयार कर लें और 5-10 मिनट तक हलके हाथों से अपनी scalp की मसाज करें। फिर 5-10 मिनट इसे ऐसा ही रहने देकर पानी से धो लें। हफ़्ते में दो बार ऐसा करने से जल्द ही आपको डैंड्रफ की समस्या से काफी निज़ात मिल जाएगी।

सावधानी

बेकिंग सोडा कम से कम मात्रा में ही प्रयोग किया जाना चहिए।
इस्तेमाल के बाद अच्छी तरह से सर धो लें ताकि बेकिंग सोडा पूरी तरह से निकल जाए।

इस उपचार के साथ अपनी खाने-पीने की आदतों का भी खास ख्याल रखें। अच्छी जीवनशैली और उपयुक्त उपचार के द्वारा कुछ ही समय में इस समस्या से मुक्ति पाई जा सकती है।


9 जन॰ 2017

क्या जानते हैं आप फ़ेयरनेस क्रीम में मिले पारे का सच


भारत एवं मिडिल ईस्ट के बाज़ारों में फेयरनेस क्रीम भारी मात्रा में बिकता है। महिलाएं इन उत्पादों का प्रयोग करने में पुरुषों के मुकाबले भले ही आगे हों परंतु पुरुष भी अब इन क्रीम्स का बहुतायत में प्रयोग करने लगे हैं। ये क्रीम्स आपकी स्किन को गोरा और चमकदार बना देने का दावा तो करती हैं लेकिन इनके साइड इफेक्ट्स के बारे में कोई नहीं बतलाता।

इन फेयरनेस क्रीमों में हानिकारक और अति ज़हरीला पदार्थ पारा मिला हुआ होता है जो की आपके स्वास्थ्य के लिए बहुत ही नुकसानदायक होता है। अमेरिकन केमिकल सोसायटी के अनुसार ऐसे किसी भी उत्पाद में पारे का तय मानक 1 भाग प्रति मिलियन होना चाहिए परंतु कुछ भारत में बिक रही अधिकांश गोरेपन की क्रीमों में पारे की मात्रा 2,10,000 भाग प्रति मिलियन तक होती है जोकि सामान्य से कहीं अधिक है।

महिलाएं इन क्रीमों के प्रयोग के बाद अकसर खाने के सामान को हाथ लगाती हैं या फिर शिशुओं को छूती हैं जोकि बेहद ही ख़तरनाक है। हालांकि गोरेपन के लिए पारा वाकई एक कारगर एक्टिव इंग्रीडिएंट है परंतु चूहों पर एक जानीमानी क्रीम का उपयोग करने पर पाया गया कि उनके लिए वह उनके अंगों जैसों किडनी, लीवर एवं मस्तिष्क के लिए बेहद घातक है। एक अन्य रिसर्च में पाया गया कि पारे का प्रयोग मानवों में किडनी फेल्यर के लिए भी सक्षम है।

पहले ये क्रीम आसानी से पारा डिटेक्ट ना होने के कारण बच निकलती थीं परंतु अब आधुनिक तकनीक जैसे टोटल रिफ्लेक्शन X-Ray फ्लूरेसेंस की मदद से पारे जैसे ज़हरीले पदार्थ अब पहचान में आ जाते हैं जिससे अब वैज्ञानिकों को इस तरह के उत्पादों के बारे में अधिक जानकारी मिल पा रही है।

ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि इन क्रीमों के बिना गोरापन या चमकदार स्किन नहीं पायी जा सकती है। असल में इसके लिए आवश्यक सारी चीज़ें आपके किचिन में ही मिल जाएंगी। नीम्बू, बेसन, दही, कसा हुआ आलू, शहद आदि तमाम ऐसी चीजें हैं जो पहली बार के प्रयोग से ही अपना असर दिखाना प्रारंभ कर देती हैं फिर भी पता नहीं क्यों लोग इन फेयरनेस क्रीमों के पीछे बिना उसका सच जाने भाग रहे हैं। सौन्दर्य प्रसाधनों के बारे में कहा जाता है कि आपको अपने शरीर पर सिर्फ ही पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए जिसे आप खा सकें। पारे जैसे ज़हरीले पदार्थ कभी भी इन प्राकृतिक संसाधनों का स्थान नहीं ले सकते।

8 जन॰ 2017

हार्ट अटैक से एक महीने पहले आपकी बॉडी देती है वॉर्निंग, नज़रअंदाज़ ना करें ये लक्षण



भारत समेत दुनिया भर में सबसे ज़्यादा मौतें हृदयाघात या हार्ट अटैक से होती हैं। ऐसा माना जाता है कि अटैक से कुछ समय पहले ही इसके संकेत मिलना शुरू हो जाते हैं लेकिन लोग इन लक्षणों को आम समझ कर इन्हें नज़रअंदाज़ कर देते हैं जिसकी वजह से उनकी जान पे बन आती है। आइए जानते हैं कि कौन से हैं वो लक्षण जिनपर आपको हमेशा गौर करते रहना चाहिए।

दिल की अच्छी सेहत के लिए आपको हमेशा आपको सेहतमंद खानपान और व्यायाम पर ध्यान देना चाहिए। इसके अलावा आपकी नज़र अपनी सेहत पे भी बनी रहनी चाहिए। तकनीकी रूप से हार्ट अटैक तब आता है जब हार्ट का कोई हिस्सा ब्लॉक हो जाता है एवं हार्ट को ऑक्सीजनयुक्त रक्त नहीं मिल पाता। ऐसे में तुरंत इलाज न मिलने पर मरीज़ की मृत्यु भी हो सकती है। ऐसी स्थिति बनने से पहले ही आप हाई ब्लडप्रैशर के शिकार हो जाते हैं तो यदि आपको उच्च रक्तचाप की शिकायत है तो अभी से सावधान हो जाएं।


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हमारे दिल की सेहत में हुए बदलाव को जिस लक्षण के रूप में पहचाना जा सकता है वह है थकान। थकान से यहाँ अभिप्राय है कि बिना श्रम करे अथवा मामूली कार्य करने में भी यदि अक्सर थकान महसूस करते हैं तो यह एक चिंता का कारण हो सकता है। यदि अपने पर्याप्त मात्रा में भोजन किया हो तथा नींद भी भरपूर ली हो तब भी यदि आपको थकान महसूस हो तो यह सामान्य बात नहीं है।

दूसरा लक्षण है बेवजह नींद उचटना। यदि बार-बार आप नींद से जाग जाते हैं तो यह आपके अवचेतन का आपको जताने का एक तरीका है कि आपके शरीर के साथ कुछ ठीक नहीं है। ऐसे में बार-बार आपको लग सकता है कि आपको बाथरूम जाना है अथवा आपको बार-बार प्यास लगने के कारण उठना पड़ता है।

अन्य लक्षण जो कि हार्ट की किसी समस्या को इंगित करता है वह है हांफ भर आना। जब शरीर को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाती उस परिस्थिति में ऐसा होता है। इसके अलावा अक्सर आपको गहरी सांस लेने की भी आवश्यकता महसूस होती है।

सामान्य भोजन करने के पश्चात् भी यदि आपको अपच की शिकायत रहती है तो यह भी आपके दिल की सेहत से जुड़ा मामला हो सकता है।


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यदि आप इन लक्षणों को महसूस कर रहे हैं तो आज ही आपको सजग हो जाना चाहिए। हमारी सेहत का ख्याल रखना हमारा परम कर्तव्य है। बिना समय गंवाए अपने दिल की जाँच कराएं और आवश्यक उपचार करें।


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