13 जुल॰ 2015

पाँचों प्राणों के स्थान और कार्य


1. प्राणवायु

मस्तक, छाती, कंठ, जीभ, मुख और नाक ये सभी प्राणवायु के स्थान हैं। मन का कार्यक्षेत्र मस्तिष्क होता है एवं प्राणवायु मन का नियमन करता है और सम्पूर्ण इन्द्रियों को अपने-अपने कार्यों में लगाता है।प्राणवायु से अन्न शरीर में जाता है। प्राणवायु के निकलने पर मृत्यु हो जाती है।

2. अपानवायु

अपानवायु के स्थान हैं - दोनों अंडकोष, मूत्राशय, मूत्रेन्द्रिय, नाभि, उरू, वक्षण और गुदा। आंत में रहने वाला अपानवायु शुक्र, मलमूत्र तथा गर्भ को बाहर निकालता है।

3. समानवायु

स्वेद दोष तथा जल-वहन करने वाले स्रोतों में रहने वाला तथा जठराग्नि के पार्श्व में इसका स्थान है। समानवायु अग्नि के बल को बढ़ाने वाला होता है।

4. उदानवायु

नाभि, वक्षःप्रदेश और कण्ठ उदानवायु स्थान हैं। वाणी को निकालना, प्रत्येक कार्य में यत्न करना, उत्साह बढ़ाना, बल और वर्ण को समुचित रखना इसके कार्य हैं।

5. व्यानवायु

व्यानवायु मनुष्य के सारे शरीर में व्याप्त रहता है। यह तीव्र गति वाला होता है।इसका कार्य शरीर में गति उत्पन्न करना, अंगों को फैलाना एवं पलकों को झपकना इत्यादि है।

यदि ये पाँच वायु अपनी स्वाभाविक अवस्था में रहें तो इनके द्वारा रोगरहित स्वस्थ शरीर का धारण होता है।

बारिश के मौसम में क्या करें क्या ना करें, जानिए आयुर्वेद के नज़रिए से


इस मौसम में आसमान बादलों से घिरा रहता है और हवा में नमी बनी रहती है। इस मौसम के दूषित जल और नमीयुक्त शीतल वायु से शरीर की अग्नि मंद पड़ जाती है। मंद हुई अग्नि से पाचनतंत्र पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। साथ ही इस समय वायु भी दूषित हो जाती है और जल अम्ल्युक्त हो जाता है जिससे शरीर का पित्त कुपित हो जाता है। अग्नि मंद होने और वर्षा के पानी में पशुकीटआदि के मलमूत्र के स्पर्श से कफ़ भी कुपित हो जाता है। इस प्रकार से बारिश के मौसम में वात, पित्त और कफ़ तीनों ही के दोषों के कारण बीमारियों से घिरने की संभवना सबसे ज़्यादा होती है।

बारिश के मौसम में स्वस्थ रहने के लिए अग्निवर्धक पदार्थों का सेवन करना चाहिए जैसे मूंग की दाल, मट्ठा, नीम्बू, अंजीर और खजूर इत्यादि। पानी उबालकर ही पीना चाहिए। रोज़ हरड़ के चूर्ण के साथ सेंधा नमक का सेवन करना चाहिए। अधिक वर्षा के दिनों में लवणयुक्त खट्टे एवं स्निग्ध पदार्थों का सेवन करना चाहिए। तेल लगाकर स्नान करना चाहिए। पहनने के वस्त्रों को अकसर धूप में सुखाना चाहिए।

उदमन्थं दिवास्वप्नमवश्यायं नदीजलम्।
व्यायाममातपं चैव व्यवायं चात्र वर्जयेत्।।

अर्थात इस ऋतु में नदीतट का वास, नदी का जल, जलयुक्त सत्तू, दिन में सोना, व्यायाम, अधिक परिश्रम, धूप, रूखे पदार्थों का सेवन एवं स्त्री सहवास वर्जित हैं।

इस प्रकार कुछ सावधानियां बरतकर स्वस्थ रहकर आप वर्षा ऋतु का आनंद ले सकेंगे।

12 जुल॰ 2015

एल्युमीनियम के बर्तनों में बने भोजन के गंभीर दुष्परिणाम


आजकल हमारे रसोईघरों में ज़्यादातर बर्तन एल्युमीनियम से बने हुए होते हैं। आज विश्व के लगभग ६०% बर्तन अल्यूमीनियम से बनाए जाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक तो ये दूसरी धातुओं के मुकाबले सस्ते और टिकाऊ होते हैं, ऊष्मा के अच्छे सुचालक होते हैं।

भले ही एल्युमीनियम के बर्तन सस्ते पड़ते हों लेकिन हमारे स्वास्थ्य पर इनका बहुत बुरा असर पड़ता है। इन बर्तनों में पके हुए भोजन के कारन एक औसतन मनुष्य प्रतिदिन 4 से 5 मिलीग्राम एल्युमीनियम अपने शरीर में ग्रहण करता है। मानव शरीर इतने एल्युमीनियम को शरीर से बाहर करने में समर्थ नहीं होता है। एक तरह से हम रोज़ इन एल्युमीनियम के बर्तनों के बहाने धीमा ज़हर खा रहे हैं। गौर से देखने पर आप पाएंगे कि एल्युमीनियम के बर्तनों में बने भोजन का रंग कुछ बदल जाता है ऐसा इसलिए होता है कि यह भोजन एल्युमीनियम से दूषित हो जाता है।

स्वास्थ्य पर इसका बुरा प्रभाव इसलिए पड़ता है क्योंकि एल्युमीनियम भोजन से प्रतिक्रिया करता है, विशेष रूप से एसिडिक पदार्थों से जैसे टमाटर आदि। प्रतिक्रिया कर यह एल्युमीनियम हमारे शरीर में पहुँच जाता है। सालों तक यदि हम एल्युमीनियम में पका खाना खाते रहते हैं तो यह एल्युमीनियम हमारी मांसपेशियों, किडनी, लीवर और हड्डियों में जमा हो जाता है जिसके कारण कई गंभीर बीमारीयां घर कर जाती हैं।

एल्युमीनियम पोइज़निंग के लक्षण

एल्युमीनियम पोइज़निंग का मुख्य लक्षण है पेट का दर्द। हो सकता है आपके पेट में अक्सर रहने वाला दर्द एल्युमीनियम के कारण हो। इसके अलावा कमज़ोर याददाश्त और चिंता इसके दूसरे प्रमुख लक्षण हैं।


एल्युमीनियम के कारण होने वाली बीमारियां

कमज़ोर याददाश्त और डिप्रेशन
मुंह के छाले
दमा
अपेंडिक्स
किडनी का फेल होना
अल्ज़ाइमर
आँखों की समस्याएं
डायरिया या अतिसार

इसलिए हमेशा लोहे अथवा मिट्टी के पात्रों में ही भोजन पकाया जाना चाहिए। यह आपके भोजन के स्वाद और आपकी सेहत दोनों के लिए अच्छा है।

7 जुल॰ 2015

अतिगुणकारी हरड़ (Terminalia chebula)


हरीतकी सदा पथ्या मातेव हितकारिणी।
कदाचित कुप्यते माता नोदरस्था हरीतकी॥

हरीतकी (हरड़) सदा ही पथ्यरूपा (जिसका कभी परहेज ना करना पड़े) है, माता के समान हित करने वाली है। माता कभी-कभी कोप कर सकती है किन्तु सेवन की गयी हरड़ कभी कुपित नहीं होती, सदा हित ही करती है।

1. नमक के साथ हरड़ खाने से पेट सदा साफ रहता है। हरड़ के चूर्ण में एक चौथाई भाग ही नमक मिलाना चाहिए इससे अधिक में दस्तावर हो सकता है।

2. घी के साथ हरड़ का चूर्ण चाटने से कभी हृदय रोग नहीं होता।

3. सुबह शहद के साथ हरड़ का चूर्ण चाटने से शरीर का बल और शक्ति बढ़ती है।

4. मक्खन-मिस्री के साथ हरड़ के चूर्ण का सेवन करने से स्मरण शक्ति और बुद्धि बढ़ती है अतः विद्यार्थियों का इसका सेवन अवश्य करना चाहिए।

5. पंचगव्य के साथ हरड़ का चूर्ण सेवन करने से आयु बढ़ती है।

अतः हरड़ सदा ही हितकारी है, इसका सेवन नित्य करना चाहिए।

स्मरणशक्ति बढ़ाने वाला चमत्कारी कल्याणवलेह


कल्याणवलेह के २१ दिन तक नित्य सेवन से स्मरण शक्ति बहुत बढ़ जाती है। ऐसा व्यक्ति सुनकर ही बातों को याद कर लेता है। उसकी आवाज़ बादलों के समान गंभीर और कोयल के समान मधुर हो जाती है।

बनाने की विधि: हल्दी, बच, कूठ, पीपल, सोंठ, जीरा, अजमोद, मुलेठी और सेंधा नमक सब बराबर मात्रा में मिलाकर महीन पीस कर चूर्ण तैयार कर लें।

(सहरिद्रा वचा कुष्ठं पिप्पलीविश्वभेषजम्।
अजाजी चाजमोदा च यष्टीमधुकसैन्धवम्।।)

सेवन की विधि: ८ से १६ रत्ती (१ से २ ग्राम) तक आयु के अनुसार २१ दिनों तक नित्य प्रयोग करें।

6 जुल॰ 2015

इन बातों का ध्यान रख उच्च रक्तचाप रोगी जी सकते हैं सामान्य जीवन


उच्च रक्तचाप के मरीज़ों को अपनी दिनचर्या संयमित बनानी चाहिए जिससे वे स्वस्थ रहकर सामान्य जीवन का आनंद ले सकें। प्रस्तुत हैं खानपान और दिनचर्या संबंधी कुछ टिप्स-


  • उच्च रक्तचाप के मरीज़ों को रोटी के आटे में अजवाइन डालकर सेवन करना चाहिए इससे जठराग्नि दीप्त होती है और रक्तचाप नियंत्रित रहता है।
     
  • भोजन को अच्छी तरह से चबाकर खाना चाहिए। भोजन करने में कभी भी शीघ्रता ना करें।
     
  • खट्टे, मीठे एवं तीखे व्यंजनों का त्याग कर देना चाहिए।
     
  • भोजन भूख से कुछ करना चाहिए, इससे आयु की वृद्धि होती है।
     
  • आलू, अरबी और मैंदे की तली हुई चीज़ों जैसे कचौड़ी, समोसे इत्यादि का सेवन ना करें।
     
  • देर से हजम होने वाले भोजन से बचें।
     
  • भारी वज़न ना उठाएं।
     
  • तेज़ी से सीढ़ियाँ ना चढ़ें।
     
  • कठिन व्यायाम और परिश्रम ना करें।
     
  • सुखासन, वज्रासन और पूर्वोत्तनासन उच्च रक्तचाप के मरीज भी कर सकते हैं। इस रोग में ये विशेष लाभकारी हैं।
     
  • ऐसी बातों, साहित्य और सिनेमा इत्यादि से दूर रहे जिनसे दिमाग पर दबाव पड़ता है।
     
  • ऐसे रोगी के परिवार के लोगों को भी इस बात का पूरा ख़्याल रखना चाहिए कि रोगी को किसी बात का मानसिक कष्ट ना हो। उनके खानपान का भी ध्यान रखना चाहिए।

सीताफल के सेहत से जुड़े 10 फायदे


बरसात के मौसम में पाया जाने वाला सीताफल आपकी सेहत के लिए कई प्रकार से लाभकारी है। आइए जानते हैं उसके कुछ गुण और दोषों के बारे में-

1. जिनका वज़न कम है उनके लिए सीताफल बड़े काम का फल है। सीताफल में बहुत कैलोरी पाई जाती हैं एवं इसमें उपस्थित शर्करा मेटाबोलिस्म को बढाती है जिससे भूख खुलती है।

2. सीताफल विटामिन C से भरपूर होता है जो कि एक बहुत अच्छा एंटीऑक्सीडेंट होता है जो आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इसे खाने से फ्री रैडिकल्स से लड़ने में मदद मिलती है जो कैंसर जैसे रोगों से हमारी सुरक्षा करने में बहुत कारगर है।

3. सीताफल में विटामिन B कॉम्प्लेक्स पाया जाता है जो कि आपके मस्तिष्क के लिए बहुत ज़रूरी है। इससे तनाव और डिप्रेशन कम होता है।

4. सीताफल का छिलका दांतों और मसूड़ों की बिमारियों से लड़ने में हमारी मदद करता है।

5. खून की कमी को भी सीताफल पूरा करने में बहुत लाभकारी है। इसमें प्रचुर मात्रा में आयरन पाया जाता है। इसके प्रयोग से वमन (उल्टी), रक्त में थक्के जमना और गठिया जैसी बिमारियों में भी राहत मिलती है।

6. इसमें पाया जाने वाला रायबोफ्लेविन और विटामिन C के कारण यह आपकी आँखों के लिए लाभकारी है यह आपकी आँखों की ज्योति को बढ़ाता है।

7. सीताफल में प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला मैग्नीशियम शरीर में पानी की मात्रा को संतुलित रखता है और जोड़ों से एसिड बाहर निकालता है जो की गठिया जैसे हड्डियों के रोगों में बहुत लाभकारी है। इसमें कैल्शियम भी पाया जाता है।

8. यह आपके हृदय के स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है क्योंकि इसमें सोडियम और पोटेशियम आवश्यक अनुपात में होते हैं जो कि रक्तचाप को स्थिर रखने में सहायक हैं। यह शरीर में घातक कैलोस्ट्रॉल को कम कर लाभदायक कैलोस्ट्रॉल को बढ़ाता है। इसमें पाया जाने वाला मैग्नीशियम हृदय की मांसपेशियों के लिए बहुत ज़रूरी है जोकि हमें हृदयघात से बचाता है।

9. यह आंतों से टोक्सिन बाहर निकालता है जिससे आपका पाचनतंत्र भी स्वस्थ होता है। सीने में जलन, एसिडिटी, छालों और गैस जैसी तकलीफों में भी यह बहुत लाभकारी है। यह आपकी त्वचा के निखार के लिए भी बहुत उपयोगी है।

10. असमय प्रसव में सीताफल बेहद लाभकारी है। इसमें पर्याप्त मात्रा में कॉपर पाया जाता है जोकि शरीर को हीमोग्लोबिन बनाने में मदद करता है। एक गर्भवती स्त्री को भ्रूण के विकास के लिए प्रतिदिन 1000 मि.ग्रा. कॉपर की आवश्यकता होती है। इससे कम मात्रा में समय से पहले प्रसव और अविकसित भ्रूण की आशंका बनी रहती है इसलिए गर्भवती स्त्रियों को सीताफल का सेवन करते रहना चाहिए।

सीताफल के सम्बन्ध में कुछ चेतावनियाँ

1. सीताफल की प्रकृति बहुत ठंडी होती है इसलिए इसका सेवन निश्चित मात्रा में ही करना चाहिए

2. इसके बीज विषैले होते हैं अतः इनका सेवन कदापि ना करें।

3. डायबिटीज़ के मरीज़ों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इसमें शर्करा बहुत अधिक मात्रा में पाई जाती है।

4 जुल॰ 2015

हाई ब्लडप्रैशर का रामबाण इलाज


हाई ब्लडप्रैशर से ग्रसित मरीजों के लिए एक बहुत ही अच्छा उपाय है। इस प्रयोग को आसानी से किया जा सकता है।

 रात को 10 ग्राम जटामांसी 100 ग्राम पानी में भिगो दें। सुबह मसलकर छान लें। इस पानी में 2 चम्मच शहद मिलाकर रोज़ पियें। 60 दिन तक नियमित इस प्रयोग को करने से उच्च रक्तचाप से पूर्णतः मुक्त हो जाएंगे। परहेज़ का भी ध्यान रखें।


जटामांसी किसी भी आयुर्वेदिक स्टोर अथवा बड़े किराना स्टोर पर मिल जाती है। इस प्रयोग को करते समय नपातुला भोजन लें। अधिक नमक, तला हुआ एवं तिक्त भोजन ना करें। हल्का व्यायाम रोज़ करें। रात्रि में भोजन सोने से कम से कम 2 घंटे पहले कर लें। अवश्य लाभ होगा।

2 जुल॰ 2015

फेफड़ों के बारे में रोचक जानकारी



हमारे फेंफड़ों का मुख्य कार्य हमारे द्वारा ली गई सांसों से रक्तप्रवाह में ऑक्सीजन पहुँचाना तथा कार्बनडाईऑक्साइड बाहर निकलना है।

अधिकांश कशेरुकी प्राणियों (जिनमें रीढ़ की हड्डी होती है) के दो फेंफड़े होते हैं।

हमारा दायाँ और बायाँ फेंफड़ा एक जैसा नहीं होता। हमारा बायाँ फेंफड़ा हृदय को जगह देने के कारण थोड़ा छोटा होता है। वहीं हमारा बायाँ फेंफड़ा दो भागों में विभाजित रहता है जबकि दायाँ तीन भागों में।

क्या हम एक फेंफड़े के सहारे ज़िंदा रह सकते हैं? बिलकुल रह सकते हैं? दुनिया में कई लोग सिर्फ एक ही फेंफड़े के सहारे ज़िंदा हैं हालाँकि वे सामान्य व्यक्ति की तरह अधिक परिश्रम नहीं कर सकते।

जिन लोगों के फेंफड़ों की क्षमता या आयतन अधिक होता है वे पूरे शरीर में ऑक्सीजन तेज़ी से पहुंचा सकते हैं। आप अपने फेंफड़ों की क्षमता नियमित अभ्यास से बढ़ा सकते है।

आराम करते समय एक वयस्क मनुष्य एक मिनट में करीब 12 से 20 बार सांसें लेता है।

एक आम मनुष्य दिन भर में 11,000 लीटर वायु सांसों के माध्यम से अपने शरीर में ग्रहण करता है।

मेडिकल साइंस में फेंफड़ों का अध्ययन  पुलमोनोलॉजी (Pulmonology) कहलाता है।

धूम्रपान से फेंफड़ों का कैंसर हो सकता है।

दमे का रोग फेंफड़ों से जुड़ा एक प्रचलित रोग है। दमे का प्रभाव तब होता है जब श्वास नली में संकुचन पैदा हो जाता है, जिसका प्रमुख कारण बैक्टीरिया और धूम्रपान इत्यादि है।

निमोनिया एक खतरनाक बीमारी है। इसके कारण आप सांस से ली जाने वाली वायु में से ऑक्सीजन ग्रहण नहीं कर पाते।

सेहत बनाए अंकुरित मूंग



प्रकृति में आसानी से उपलब्ध अंकुरित मूंग आपके स्वास्थ्य के लिए बहुत ही गुणकारी है। अंकुरित मूंग में कैलोरी की मात्रा बहुत कम होती है जिससे यह आपको फिट रखने में भी बहुत मदद करती है। आइए जानते हैं अंकुरित मूंग में कौन कौन से पोषक तत्व पाए जाते हैं - 

मूंग को अंकुरित करने की विधि

विटामिन K

हमारी बड़ी आंत में पाए जाने वाले बैक्टीरिया विटामिन K का निर्माण करते हैं लेकिन शरीर को आवश्यक मात्रा में नहीं। यह हमारी हड्डियों और हृदय में रक्त संचार प्रणाली के लिए बहुत आवश्यक है। अंकुरित मूंग में विटामिन K अच्छी मात्रा में उपलब्ध होता है।

विटामिन C

विटामिन C का एंटीऑक्सीडेंट गुण हमारी कोशिकाओं को फ्री रैडिकल से बचाता है जो कि कैंसर से लड़ने में बहुत मददगार है।

लौह तत्व (Iron)

अंकुरित मूंग में प्रचुर मात्रा में आयरन पाया जाता है। आयरन हमारे रक्त को शरीर में सुचारू रूप से ऑक्सीजन पहुँचाने में बेहद ज़रूरी है। इसके अलावा यह हमारी कोशिकाओं की वृद्धि में भी सहायक है जोकि हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए ज़रूरी है।

फ़ॉलेट

विटामिन B का एक प्रकार फ़ॉलेट हमारे शरीर में डीएनए बनाने में अहम भूमिका अदा करता है। साथ ही यह लाल रक्त कण बनने में भी महत्वपूर्ण कारक है। ये प्रक्रियाएं सभी के लिए ज़रूरी हैं लेकिन बढ़ते बच्चों के विकास में तो ये एकदम ज़रूरी घटक हैं। इसलिए बच्चों को अंकुरित मूंग अवश्य देना चाहिए।

अंकुरित मूंग के सम्बन्ध में कुछ चेतावनी

अंकुरित मूंग में बहुत मात्रा में बैक्टीरिया पाए जाते हैं इसलिए बहुत छोटे नवजात शिशुओं और गर्भवती स्त्रियों को इसके सेवन से बचना चाहिए। बहुत बूढ़े लोग भी जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई हो वो भी इन बैक्टीरिया के दुष्प्रभाव से लड़ने में इतने सक्षम नहीं होते उन्हें भी इसे कच्ची खाने की सलाह नहीं दी जाती। ऐसे लोगों को अंकुरित मूंग पकाकर ही खानी चाहिए।

मूंग को अंकुरित करने की विधि



अंकुरित होने के बाद मूंग और भी अधिक गुणकारी हो जाती है। यह लो-कैलोरी और पोषक तत्वों से भरपूर होती है। आइए जानते हैं मूंग को अंकुरित कैसे करें - 

सबसे पहले मूंग को साफ़ कर लें जिससे उसमें किसी तरह के कंकड़-पत्थर एवं अशुद्धियाँ निकल जाएं। इसके बाद उसे धोकर 6 से 8 घंटों के लिए पानी में भिगो दें। इसके बाद इसे छानकर दोबारा धो लें। फिर इसे 10 से 12 घंटों के लिए सूती कपड़े में लपेटकर लटका दें। कपड़ा सूखने पर इसे बार बार गीला करते रहें। 10 से 12 घंटों में आपकी मूंग अंकुरित हो जाएंगी और फिर वे आपके खाने के लिए तैयार हैं।

गाय के दूध के १० गुण

गाय का दूध बाकी सभी पशुओं से मिलने वाले दूध से बहुत अलग है। जानते हैं गाय के दूध के १० गुणों के बारे में -

स्वादु शीतं मृदु स्निग्धं बहलं श्लक्ष्ण पिच्छिलम्।
गुरु मन्दं प्रसन्नं च गव्यं दशगुणं पयः॥


गाय के दूध में ये दस गुण होते हैं - स्वादिष्ट, ठंडा, कोमल, चिकना, गाढ़ा, सौम्य लसदार, भारी और बाह्य प्रभाव को विलम्ब से ग्रहण करने वाला तथा मन को प्रसन्न करने वाला।

इतना ही नहीं प्रातर्दोह (सुबह के समय दुहा हुआ), संगव (दोपहर के समय दुहा हुआ) एवं सायंदोह (शाम के समय दुहा हुआ) दूध भी अलग-अलग प्रभाव रखता है। सुबह का दूध वीर्यवर्धक एवं अग्निदीपक, दोपहर का दूध बलकारक, बच्चों की वृद्धिकरक बूढ़ों में क्षयनाशक, मंदाग्नि नष्ट करने वाला, पित्त को हरने वाला एवं कफनाशक तथा शाम का दूध अनेक दोषों को नष्ट करने वाला होता है।

गाय का धारोष्ण (थनों से तुरंत निकला हुआ दूध) सभी असाध्य से भी असाध्य रोगों का नाश कर डालता है।

अतः गाय का दूध सदा सेवनीय है।

1 जुल॰ 2015

मोटापा दूर करें



साधारणतः मोटापे की पहचान है कि जितने इंच ऊंचाई हो उतने ही किलोग्राम वज़न होना चाहिए इससे कम होने पर पतला और अधिक होने पर मोटा कहा जायेगा।

बचपन में दौड़भाग करते रहने के कारण शरीर में फालतू चर्बी जमा नहीं हो पाती लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं शारीरिक श्रम के आभाव में शरीर पर चर्बी जमा होने लगती है। चर्बी के कारण रक्त संचार में बाधा उत्पन्न होती है एवं रक्तवाहिनियों में वसा के कारण कोलेस्ट्रॉल जमा हो जाता है जिससे बी.पी. एवं हृदयरोग घर कर जाते हैं। रक्त संचार कम होने पर रोग प्रतिरोधक क्षमता भी घट जाती है और तमाम बीमारियों का खतरा पैदा हो जाता है।

मोटापा दूर करने या इससे बचने के दो उपाय हैं, पहला है - भोजन सुधार और दूसरा है - प्रतिदिन शारीरिक श्रम। जिन पदार्थों में कार्बोहायड्रेट अधिक हो उन्हें त्याग दें जैसे तेल, घी, आलू, शकरकंद और चीनी। सुबह जल्दी उठकर एक गिलास गुनगुने पानी में एक नीम्बू और 1 से 2 चम्मच शहद मिलकर नित्य पियें। इसके बाद शौच के लिए जाएं। फिर 3 से 4 किलोमीटर टहलें और हल्का व्यायाम करें।

नाश्ते में पराठें, ब्रैड, सीरियल या पोहे की जगह रसदार फल खाएं और मख्खन निकला मट्ठा पियें।

दोपहर और रात के भोजन में गेंहू की जगह जौं के आटे की एक-दो रोटी लें, उबली या कम घी में फ़्राय सब्ज़ी तथा सूप लें। डब्बाबंद तेल का प्रयोग कभी ना करें।

खाने के तुरंत बाद पानी पीने से भी मोटापा बढ़ता है क्यूंकि इससे जठराग्नि मंद होती है और शरीर खाने को ऊर्जा की बजाय चर्बी में बदल देता है।

क्रोध, चिंता और शोक ये स्वास्थ्य और सौंदर्य का नाश करते हैं अतः इनसे बचें।

चुटकुला: स्वर्ग के देव और लालू



एक बार एक देव ने पृथ्वीलोक के तीन नेताओं को सही उत्तर बताने पर स्वर्ग का न्योता भेजा। इसमें तीन नेता चुने गए-

1. सोनिया गाँधी
2. नरेंद्र मोदी
3. लालू प्रसाद यादव


देव का पहला सवाल - 

सोनिया से: चूहा की स्पेलिंग बताओ।
सोनिया: RAT
मोदी से: बिल्ली
की स्पेलिंग।
मोदी: CAT

लालू से: चकोस्लोवाकिया की स्पेलिंग।
लालू: धत बुड़बक! इ सबसे चूहा-बिल्ली, आ हमरा से चकोस्लोवाकिया। ई सब नए होगा फेर से
पुछिये।


देव बोले, ठीक है अगला सवाल -


सोनिया से: यह एक लडका है , की अंग्रेजी बताओ।
सोनिया: This is a boy
मोदी से: वह एक लडकी है ,
की अंग्रेजी बनाओ।
मोदी: That is a girl
लालू से: हरा पेड़ चर्रर्रर्र से गिर गया, की अंग्रेजी बनाओ।
लालू: ई का उ सबसे लड़का -लड़की, आ हमरा से चर्रर्र पर्रर्र। फेर से फेर से नै-नै फेर से, फेर से होगा।
देव बोले, लालू जी आप तो बच्चों की तरह जिद कर रहे हैं। आखिरी मौका दे रहा हू बस।


सोनिया से: जलियावाला बाग हत्याकांड कब हुआ था?
सोनिया: 1919 में।
देव: ठीक है स्वर्ग मे जाओ।
मोदी से: उस हत्याकांड मे कितने लोग मरे थे?
मोदी: यही कोई दस हजार लोग।
देव: ठीक है स्वर्ग मे जाओ।
लालू से: उन दस हजार के नाम बताओ।
लालू बेहोश

जानिए किन लोगों के लिए दिन में सोना निषेध नहीं है



वैसे तो दिन में सोना वर्जित है पर आयुर्वेद के अनुसार इन लोगों के लिए दिन में सोना निषेध नहीं है -

१) अति अध्ययन या अति मानसिक कार्य से थके हुए लोग,

२) जिसे वमन या अतिसार हुआ हो,

३) जो शारीरिक श्रम करता हो अथवा पैदल यात्रा करता हो,

४) जसका भोजन अच्छे से पच गया हो,

५) जिसे फेफड़ों की बीमारी हो या श्वासरोग से ग्रस्त हो,

६) जिसे चोट लगी हो,

७) जो पागल हो,

८) जो नियमित रात्रिजागरण करता हो जैसे प्रहरी सैनिक इत्यादि,

९) जो भय, क्रोध आदि मनोवेगों से गंभीर रूप से ग्रस्त हो,

१०) छोटे बच्चे एवं वृद्ध।

उपरोक्त अवस्थाओं वाले व्यक्ति दिन में सो सकते हैं। ऐसे व्यक्ति यदि दिन में सोते हैं तो उनकी धातुएं सम हो जाती हैं एवं शरीर में बल एवं क्षमत्व की वृद्धि होती है।

इसके अतिरिक्त ग्रीष्म ऋतु में प्रत्येक व्यक्ति को दिन में निद्रा सेवन करना चाहिए क्योंकि ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की किरणें शरीर से जल का शोषण करती हैं परिणामतः शरीर में सूखेपन के कारण वायु का संचय होने लगता है। ऐसे में जब गर्मियों में व्यक्ति दिन में सोता है तो कफ की वृद्धि होती है और वायु का शमन होता है।

यह भी पढ़ें